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जैसा खाए अन्न , वैसा बने तन और मन  You are what you eat

जैसा खाए अन्न , वैसा बने तन और मन  You are what you eat

 

नेटफ्लिक्स NETFLIX के नए फूड शो “यू आर व्हाट यू ईट: ए ट्विन एक्सपेरिमेंट (“you are what you eat : a twin experiment”)में हर कोई चर्चा कर रहा है और अपने S.A.D (स्टैंडर्ड अमेरिकन डाइट) Standered American Diet आहार के बारे में सोच रहा है। यह डॉक्यूमेंट्री चार-भाग वाली है और इसमें जुड़वाँ बच्चों के चार जोड़ों का अनुसरण किया जाता है, जिन्होंने पूरी तरह से विपरीत आहार लिया है। इस विशेष एक्सपेरिमेंट में, प्रतिभागियों को स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक बड़े प्रयोग का हिस्सा बनाया गया था।

You are what you eat : a twin experiment“यू आर व्हाट यू ईट: ए ट्विन एक्सपेरिमेंट

इसमें जुड़वाँ बच्चों (Twins) को दो विभिन्न आहार प्रणालियों पर रखा गया था। एक जुड़वां को शाकाहारी आहार पर और दूसरे को सर्वाहारी आहार पर। इस अद्वितीय प्रयोग के दौरान, प्रतिभागियों को पहले चार हफ्तों तक खाने का विशेष भोजन प्रदान किया गया, लेकिन शेष चार हफ्तों के लिए, उन्हें अपने संबंधित आहार का पालन स्वयं करना पड़ा। यह एक दिलचस्प अध्ययन है जिसमे जुड़वा बच्चों को चुना गया है, क्योंकि उन्हें आनुवंशिक रूप से एक जैसा माना गया था, जिससे अध्ययन में संबंधता व् विश्वास बना रहता है। नेटफ्लिक्स के “यू आर व्हाट यू ईट: ए ट्विन एक्सपेरिमेंट” (“you are what you eat : a twin experiment”)ने इस प्रयोग से मिले जुड़वा बच्चों के चार जोड़ों की प्रगति पर प्रकाश डाला है।

क्यों इस documentary की इतनी चर्चा हो रही है

जैसा कि इस NETFLIX के OTT शो से हमें पता  चला है कि हमारी खान पान की आदतों से प्रत्यक्ष रूप से हमारे शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है जिस की इस एक्सपेरिमेंट की रिपोर्ट बताती है कि इन TWINS के ब्लड प्रेशर कोलेस्ट्रोल पर उनके भोजन के चयन के अनुसार प्रभाव पड़ा यानि शाकाहारी खान पान की आदत वाले प्रतिभागी के शरीर पर काफी सकारात्मक प्रभाव हमें इस रिपोर्ट में देखने को मिलता है l

भारतीय विचार खान पान की आदतों के बारे में

सनातन  में मांस का सेवन करने या न करने की व्यक्तिगत आदतों को समर्थन किया जाता है। कुछ लोग सत्त्वगुण और आत्मा की शुद्धि के लिए शाकाहारी आहार का अनुसरण करते हैं, जबकि कुछ लोग मांसाहार को स्वीकार करते हैं।

“जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन और तन” एक हिंदी कहावत है जो स्वस्थ आहार और जीवनशैली के महत्व को बताती है। इसका अर्थ है कि हमारा खानपान सीधे रूप से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अगर हम स्वस्थ आहार लेते हैं, तो हमारा मन और तन भी स्वस्थ रहता है।

 

यह कहावत हमें यह बताती है कि अगर हम सही आहार चयन करते हैं, जैसे कि फल, सब्जियाँ, अनाज, और प्रोटीन युक्त आहार, तो हमारे शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और हमारा मन भी शांत रहता है। इसके विपरीत, अगर हम अनुचित आहार का सेवन करते हैं, जैसे कि तेजी से फास्ट फूड, तला हुआ और मिठा युक्त आहार, तो इससे हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

भारतीय विचारधारा में, सात्विक भोजन का विशेष महत्व है। सात्विक आहार को शांति, सात्विकता, और मानव शरीर-मन के सहज स्वस्थता के लिए उपयुक्त माना जाता है।

सात्विक भोजन की मुख्य विशेषताएं हैं:

सात्विक भोजन में उच्च गुणवत्ता और पवित्रता होती है। इसमें स्वच्छ, सत्त्वपूर्ण और आध्यात्मिक ताकत होती है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है।

सात्विक आहार में स्वाद, गंध, रंग और रूप में शुद्धि होती है। इसमें विभिन्न प्रकार के शुद्ध और सात्विक आहार सामग्रीयाँ शामिल होती हैं।

सात्विक भोजन से शरीर के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। यह मानव चेतना को शान्ति, समर्थता, और सकारात्मकता में लेकर जाता है।

सात्विक भोजन में प्राकृतिक और शुद्ध आहार का उपयोग होता है, जो बिना केमिकल्स और अतिरिक्त प्रसादों के होता है।

सात्विक भोजन से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित रखने में मदद होती है और रोगों को दूर करने में सहायक होती है।

सात्विक भोजन का अनुष्ठान करने से व्यक्ति अपने शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक दृष्टि से संतुलित रहता है और उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर एक पथ प्राप्त होता है।

मासाहार और शाकाहार: एक तुलना 

 

पृथ्वी पर रहने वाले विभिन्न समुदायों ने अपने आहार के प्रकार में विभाजन किया है, जिसमें मासाहार और शाकाहार दो मुख्य धाराएं हैं। यह धाराएं न केवल आहार के प्रकार को परिभाषित करती हैं बल्कि इसके पीछे छिपे धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय सिद्धांतों को भी दर्शाती हैं।

मासाहार, जिसे मांस शामिल करने वाले आहार की धारा कहा जाता है, विभिन्न समुदायों में विभिन्नता दिखाता है। मुर्गा, मटन, गाय, मछली, और अन्य जीवाणुओं का मांस इसे विशेष बनाता है। इसका पोषण मूल्य भी उच्च होता है, जिसमें प्रोटीन, विटामिन B12, जिंक, और अन्य पोषण सामग्रीयाँ शामिल होती हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी मासाहार को महत्वपूर्ण माना जाता है, और यह कई समुदायों में उनकी आदतों और परंपराओं का हिस्सा बन गया है।

 

विपरीत तरीके से, शाकाहार आहार विभिन्न प्रकार के फल, सब्जी, अनाज और अन्य पौष्टिक खाद्य सामग्रीयों का समृद्ध स्रोत है।  इसमें भी प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स, और फाइबर होते हैं, जो शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। धार्मिक संदर्भों में भी, शाकाहार को आध्यात्मिक प्रगति की दिशा में एक कदम माना जाता है, और इसका अनुयायी अपने आत्मा को पवित्रता में बनाए रखने का प्रयास करता है।

 

मासाहार और शाकाहार के बीच की तुलना में आध्यात्मिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी विभिन्नताएं हैं।  मासाहार का प्रयोग करने की प्रक्रिया जलवायु परिवर्तन और बनावट का पर्यावरणीय प्रभाव डाल सकती है, जबकि शाकाहार का पर्यावरणीय प्रभाव कम हो सकता है और सुरक्षित विकल्पों की प्रोत्साहना की जा सकती है।

 

मासाहार और शाकाहार दोनों ही व्यक्ति के स्वास्थ्य, धार्मिक आदतें, और पर्यावरणीय सबलता के लिए  महत्वपूर्ण हैं l शाकाहारी आहार का पर्यावरण पर कम प्रभाव हो सकता है और सुरक्षित और सस्तीप्रद विकल्प हो सकते हैं।

मासाहार और शाकाहारी आहार दोनों ही अपने-अपने प्रभावों और सुविधाओं के साथ आते हैं, और इन्हें अच्छी तरह से बनाए रखने के लिए सांत्वनापूर्ण और सुसंगत तरीके से अपनाया जा सकता है।

 

क्रमांक विशेषता शाकाहारी भोजन मासाहारी भोजन
1. पोषण मूल्य फल, सब्जी, अनाज से भरपूर पोषण प्रोटीन, विटामिन B12, जिंक का उच्च स्रोत
2. स्वाद और विविधता विभिन्न रंगबिरंगे और स्वादिष्ट विकल्प मुर्गा, मटन, मछली, आदि के विविध विकल्प
3. पारिस्थितिक और भौतिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त प्रोटीन से भरपूर, मांस  एक अच्छा स्रोत
4. पर्यावरणीय प्रभाव कम प्रभाव, पौष्टिक फसलों के प्रोत्साहन मांस पैदा करने में पर्यावरणीय प्रभाव
5. धार्मिक और सांस्कृतिक आधार कई धार्मिक संदर्भों में प्रमोट किया जाता है आदतों और परंपराओं के साथ जुड़ा होता है
6. आध्यात्मिक दृष्टिकोण आत्मा की पवित्रता को बढ़ावा देने का प्रयास कुछ सांस्कृतिक दृष्टिकोणों में अवरुद्ध माना जा सकता है

 

भोजन विकल्पों की उपलबध्ता  

अंत में हम यही कह सकते हैं की हमारी भोजन की आदत वास्तव में हमें अधिकतर मामलों में हमारी भौगोलिक स्थिति, पर्यावरण, सांस्कृतिक मान्यताएं  आदि से प्राप्त हुई है जैसे उदहारण स्वरुप भारत के अंदर ही हमें खान पान की आदतों में काफी अंतर देखने को मिलता है जैसे पूरी  भारत के लोग अधिकतर मासाहारी होते है , बंगाल के लोग ज्यादातर मछली खाते है क्योंकि वहाँ  प्रकृति ने विकल्प रूप में मछलियों की भरपूर उपलब्धता प्रदान की है , जैसा की हम जानते भी हैं की स्वामी विवेकानंद जी भी मछली खाते थे , जिनका सम्बन्ध बंगाल से है l

इस तरह अगर हम विश्व के अन्य स्थानों के बारे में जानकारी प्राप्त करें तो हम यह पाएंगे कि मनुष्य ने ज्यादातर भोजन के रूप में वही आदतें अपनाई हैं जिसको कि प्रकृति ने विकल्प रूप में प्रचुरता प्रदान की है , कालान्तर में यही आदतें मनुष्य ने अपने रीति- रिवाज व् संस्कृति के रूप में धारण कर ली l

कैसा भोजन अपनाएं : विकल्पों की उपलब्धता

भोजन कैसा भी हो , आदमी को काफी जागरूक हो कर इस बात पर अपना ध्यान देना है कि अपने आस पास की स्थिति चाहे वह भौगोलिक हो, सांस्कृतिक हो ,आर्थिक हो बस इस बात का ध्यान रखना होगा कि भोजन किसी भी रूप में waist न हो, भोजन चाहे कैसा भी हो सही मात्रा में उस भोजन का उपयोग हो ,किसी भी रूप में अतिरिक्त भोजन नष्ट न हो सके , न ही भोजन का अत्यधिक उपभोग भी न हो ताकि आदमी को स्वास्थ्य सबंधी विकार न हो पाए और न ही अन्य प्रदूषण सम्बन्धी  चिंताएं उत्त्पन्न न हो l

 

 

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