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प्रदोष व्रत Pradosh Vrat : सातों दिनों की प्रदोष व्रत कथा
हिंदू धर्म में, प्रदोष व्रत Pradosh Vrat भगवान शिव के लिए समर्पित एक पवित्र व्रत है। यह चंद्रमा के दोनों पक्षों यथा शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि अर्थात तेहरवे दिन को पड़ता है, जो आमतौर पर महीने में दो बार होता है। “प्रदोष” सूर्यास्त के ठीक पहले के समय को कहा जाता है, और “व्रत” एक संकल्प को दर्शाता है जो किसी निश्चित समय में निश्चित फल प्राप्ति या मनोकामना के लिए लिया जाता है । इस दौरान व्रतधारी भगवान शिवशंकर जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास करते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं तथा प्रदोष व्रत कथा का श्रवण करते हैं ।
प्रदोष व्रत Pradosh Vrat का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि प्रदोष व्रत Pradosh Vrat को करने से भक्तों को शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रदोष काल के दौरान भगवान शिवशंकर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, हिन्दुओं का मानना है कि श्रद्धा और ईमानदारी से प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के सभी पापों से मुक्ति मिल सकती है, मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और जीवन में समग्र कल्याण का आगमन होता है।
what is pradosh vrat प्रदोष व्रत क्या है ?
प्रदोष व्रत Pradosh Vrat की उत्पत्ति का पता हमें प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं का से चलता हैl प्रदोष (संध्या समय) के महत्व और भगवान शिव के साथ इसके संबंध के संदर्भ हमें विभिन्न ग्रंथों जैसे पुराणों और वेदों में मिलते हैं। ये शास्त्र बताते हैं कि प्रदोष को प्रदोष कहने के पीछे एक बहुत ही रोचक कथा जुड़ी हुई है। जो बताती है कि एक बार चन्द्रमा को क्षय रोग हो गया था, जिसके कारण चंद्रमा इस कष्टजनक बीमारी से काफी बुरी तरह से परेशान थे तथा उन्हें अपनी मृत्यु सामने नजर आ रही थी फिर देव प्रेरणा से चंद्रमा ने भगवान शिवशंकर की आराधना की व् इस कष्टजनक रोग से मुक्ति की प्रार्थना की जिस पर भगवान शिव उनकी याचना पर पसीज़ गए और फिर भगवान् शिवशंकर ने त्रयोदशी के दिन चंद्रमा के रोग को सदा सदा के लिए ठीक कर दिया व् चंद्रमा को पुन: नया जीवन दिया अत: त्रियोदशी के दिन को संध्याकाळ के समय जब शिव शम्भु ने चंद्रमा को न्य जीवन दिया इस समय को प्रदोष कहा जाने लगा।
when is pradosh vrat प्रदोष व्रत कब होता है ?
PRADOSHVRAT DATE 2024
शास्त्रों में कहा गया है की ‘प्रदोषों रजनीमुखम’ -अर्थात रात आने से पहले का समय l इस प्रकार से सायंकाल से बाद और रात्रि प्रारम्भ होने से पहेले के समय को ही ‘प्रदोष’ कहा जाता है l प्रदोष का व्रत प्रत्येक दिन नही क्या जाता है बल्कि केवल त्रयोदशी के दिन ही प्रदोष का व्रत किया जाता है l हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत Pradosh Vrat रखा जाता है। इसकी पूजा ‘प्रदोष काल’ में यानि रात्रि के प्रारम्भ होने के एक घंटा पहले की जाती है l यदि त्रयोदशी तिथि आधी रात से पहले आ रही हो तो द्वादशी वाले दिवस को ही प्रदोष व्रत करना चाहिए l यदि त्रयोदशी तिथि आधी रात के बाद पड़ती हो तो आने वाले दिन की सायंकाल में प्रदोष का व्रत किया जाना चाहिए है l
प्रदोष व्रत का माहात्म्य
धर्मशास्त्रानुसार प्रदोष व्रत या त्रयोदशी का व्रत व्यक्ति को संतोषी , सुखी व् निरोगी बनाता है। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से मनुष्य की हर मनोकामन पूर्ति होती है l अर्थात जो भी स्त्री-पुरुष जिस भी कामना को लेकर इस प्रदोष व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं भगवान् शिव शंकर और माता पार्वती जी पूरी करते हैं। सभी दुःख दूर हो जाते हैं।
प्रदोष व्रत से मिलने वाले लाभ
दिन |
व्रत का नाम | प्रदोष व्रत से मिलने वाले लाभ |
रविवार | रवि प्रदोष व्रत | सदा निरोग रहते हैंl |
सोमवार | सोम प्रदोष व्रत | सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं l |
मंगलवार | भौम प्रदोष व्रत | सर्व रोग से व् क़र्ज़ मुक्ति |
बुधवार | बुध प्रदोष व्रत | सभी कामनाएं सिद्ध होती हैं |
बृहस्पतिवार | गुरु प्रदोष व्रत | शत्रु नाशक व् सर्व विजय होती |
शुक्रवार | शुक्र प्रदोष व्रत | सौभाग्य में वृद्धि |
शनिवार | शनि प्रदोष व्रत |
पुत्र प्राप्ति होती है l |
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तो चलिए अब हम सातो दिनों के अनुसार प्रदोष व्रत कथा जो की पुराणों में हमें मिलती है तथा उसके महत्व के बारे में विस्तार से जानेगे
सोम प्रदोष व्रत कथा
सोम प्रदोष व्रत कथा में हम एक ब्राह्मणी के बारे में जानेंगे जो कि एक गरीब ब्राह्मणी थी तथा एक नगर में अपनी छोटी सी कुटिया में रहती थी । उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी l उसका एक पुत्र था चूँकि उसके घर में अब कोई कमाने वाला नही था इस कारण अब वह अपने पुत्र के साथ प्रतिदिन भीख मांगने जाती थी। भीख मांग कर ही वह अपना व अपने पुत्र का पालन पोषण करने लगी। एक दिन ब्राह्मणी जब भीख मांग कर घर लौट रही थी तो उसे रास्ते में एक घायल लड़का नीचे पड़ा हुआ मिला । ब्राह्मणी उस लड़के को अपने घर ले आई। वह लड़का और कोई नहीं बल्कि विदर्भ राज्य का राजकुमार था। हुआ यूँ था कि शत्रु सैनिकों ने विदर्भ राज्य पर आक्रमण कर उसके राजा पिता को बंदी बना लिया उसके राज्य पर अपना नियंत्रण कर लिया था इसलिए राजकुमार वहाँ से अपनी जान बचा कर घायल अवस्था में भाग गया और इस गरीब ब्राह्मणी को रास्ते में पड़ा हुआ मिल गया । अब वह राजकुमार उनके साथ उनके घर में रहने लगा। एक दिन एक सुंदर गंधर्व कन्या ने उस राजकुमार को देख लिया ,कन्या का नाम अंशुमति था, वह उस पर अनुरक्त हो गई। अगले ही दिन अंशुमति ने अपने माता-पिता को साथ लेकर उस विदर्भ राजकुमार से मिलाने ले आई। उन्हें भी विदर्भ राजकुमार बहुत अच्छा लगा । कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शिवशंकर ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि उस विदर्भ राजकुमार और अपनी बेटी अंशुमति का विवाह करवा दे , राजा ने तुरंत ही भगवान् शिवशंकर की आदेश का पालन किया और दोनों का विवाह करवा दिया । राजा को जब विदर्भ राजकुमार के बारे में सच्चाई पता चली तो राजा ने भगवान् शिवशंकर का बहुत बहुत धन्यवाद किया और राजा ने विदर्भ राज्य को फिर से शत्रु राज्य से वापस लड़ाई कर के जीत लिया इस प्रकार विदर्भ राजकुमार को अपना पैतृक राज्य भी वापस मिल गया l अब राजकुमार ने उस ब्राह्मण पुत्र व् उसकी माता को भी अपने साथ रखा व् उस ब्राह्मण पुत्र को अपना भाई बना लिया इस तरह भगवन भोलेनाथ की कृपा से ब्राह्मणी तथा उसका पुत्र सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे l
भौम प्रदोष व्रत कथा अथवा मंगल प्रदोष व्रत कथा
मंगल त्रयोदशी प्रदोष व्रत अथवा भौम प्रदोष व्रत मंगलवार को पड़ने वाली त्रयोदशी के दिन किया जाता है l यह कथा एक ऐसी बुढ़िया की है जो भगवन शिवशंकर की बहुत बड़ी भक्तन थी l उसका एक पुत्र था जिसका नाम मंगलू । वृद्धा को पवन पुत्र श्री हनुमानजी पर बड़ी ही आस्था व् श्रद्धा थी। बुढ़िया हर मंगलवार को श्री हनुमानजी का व्रत रखती थी तथा विधि अनुसार उनको भोग लगाती थी। मंगलवार को जब वह हनुमानजी का व्रत रखती थी तो वह दो नियमो का बड़ी श्रद्धा से पालन करती थी वह नियम यह थे कि उस दिन घर नही लीपती थी और न ही उस दिन वह मिट्टी खोदती थी।
जब व्रत करते हुए उसे काफी दिन बीत गए तो श्री हनुमानजी ने बुढ़िया की परीक्षा लेने की सोची । हनुमानजी ने साधु का वेष धरा और बुढ़िया के घर जा पहुंचे और बुढ़िया पुकारा “क्या कोई श्री हनुमान का भक्त है जो इस भगवाधारी साधु को भोजन करवा दे l” वृद्धा ने जब यह आवाज सुनी तो तुरंत अपने घर से बाहर निकल आई और उस साधु से पुछा कि वह किस प्रकार से उसकी साहयता कर सकती है ? अब साधु के वेष में श्री हनुमान जी बोले कि वह काफी भूखे हैं अतः वह उन्हें भोजन दे तथा इस हेतु नीचे जमीन को अच्छी तरह से लिपाई कर दे जहाँ वह भोजन कर सके लेकिन वह वृद्धा बड़ी ही नियम की पक्की थी उसने साधु को हाथ जोड़ कर विनती की कि महाराज आज मेरा श्री हनुमान जी का व्रत है और आज के दिन में लिपाई नही करती और न ही मिटटी खोदती हूँ lउसने आगे कहा कि इन दो कार्यों के अतिरिक्त अन्य कोई भी कार्य आप कहेंगे वह सहर्ष उसे करने को तैयार है lअब साधु के भेष में हनुमानजी ने कहा , “तो फिर ठीक है जाओ अपने पुत्र को लाओ और उसे निचे जमीन पर लिटा दो ,तथा उसकी पीठ पर आग जलाओ तब मै उस आग से खुद ही भोजन पकाकर खाउंगा” अब वृद्धा को यह सुनकर बहुत ही दुःख हुआ परन्तु उसने साधु को वचन जो दे दिया था । वृद्धा ने अपने पुत्र मंगलू को पुकार कर कहा बेटा नीचे जमीन पर लेट जाओ और ऐसा कर वृद्धा ने उसकी पीठ पर आग जला दी व् दुःख के मारे वह अंदर अपनी कुटिया में चली गई तथा मंगलू को साधु को सौंप दिया। साधु ने जब भोजन बना लिया तो वह उस भोजन को भोग स्वरुप लेकर अंदर कुटिया में चला गया तथा वृद्धा को भोग देने लगे और कहा कि अपने बेटे को भी भोग ग्रहण करने के लिए अंदर बुला दो इस पर बुढ़िया का मन भर आया पर साधु के बार बार कहने पर उसने भारी मन से मंगलू को आवाज दी तो मंगलू बाहर से मुस्कुराता हुआ कुटिया में दाखिल हुआ तथा वह एक दम से ठीक था ,यह देख कर बुढ़िया काफी खुश हो गई तथा साधु के चरणों में अपने शीश को झुका दिया इसके साथ ही पवन पुत्र हनुमान जी ने अपने दर्शन उस वृद्धा को दिएl यह देखकर वृद्धा का जीवन व् उसका व्रत रखना सफल हो गया l दर्शन देकर हनुमानजी ने वृद्धा को सुखी जीवन का आशीर्वाद दिया l
बुध प्रदोष व्रत कथा
बुधवार के दिन जब भी त्रयोदशी आती है तो उसे बुध प्रदोष कहा जाता है अगर आप प्रदोष व्रत करते हैं और उस दिन बुधवार का दिन हो तो आपको बुध प्रदोष व्रत कथा का पाठ अवश्य ही करना चाहिए जिससे आपका व्रत सफल हो lप्राचीन समय की बात है, एक व्यक्ति की नयी नयी शादी हुई थी। शादी के बाद उसकी पत्नी मायके गई हुई थी , काफी समय बाद वह अपनी पत्नी को उसके मायके से वापस लाने के लिए गया l ससुराल पहुँच कर उसकी काफी मेहमाननवाजी की गई , अगले दिन वह अपनी पत्नी के साथ अपने घर आने के लिए तैयार हो गया परन्तु पुरानी मान्यताओं के कारण उसकी सासु ने उस दिन बुधवार होने के कारण उसका घर जाने के लिए मना कर दिया क्योंकि उसकी पत्नी अपने मायके से पहली बार शादी के बाद अपने ससुराल जा रही थी, परन्तु उस दिन बुधवार था और इस दिन को रीती रिवाज के अनुसार बुरा माना गया है l दामाद ने अपनी सास से कहा कि वह आज ही यानि बुधवार के दिन ही अपनी पत्नी को लेकर अपने घर जायेगा। उसको उसके सास-ससुर , साले-सालियों आदि सभी ने बहुत समझाया कि बुधवार को अपनी पत्नी को मायके से ससुराल ले जाना बहुत ही अशुभ होता है, परन्तु वह व्यक्ति अपनी जिद पर अड़ा रहा l
अंत में विवश होकर सास-ससुर को अपने दामाद और अपनी बेटी को अनमने मन से उन्हें उनके घर के लिए विदा करना पड़ा। दोनों पति-पत्नी एक बैलगाड़ी में अपने घर को चल दिए lनगर से काफी दूर निकलने के बाद पत्नी को काफी जोर से प्यास लगी l उन्होंने बेलगाडी को वहीँ रोक दिया l अब वह व्यक्ति पानी की तलाश में इधर उधर खोजबीन करने लगा , काफी समय बाद उसको एक जगह पानी का स्रोत दिखाई दिया l जल्दी ही उसने वहाँ से एक छोटे बर्तन जो कि वह साथ लेकर आया था , में पानी भरा और वापस बेलगाडी के पास आ गया लेकिन जैसे ही वह बेलगाडी के नजदीक पहुंचा वह देखता है कि उसकी पत्नी तो किसी अन्य मर्द के हाथ से पानी पी रही है ,यह देखकर उसे बहुत ज्यादा क्रोध आ जाता है वह जल्दी से बेलगाडी के पास आ जाता है , बेलगाडी के पास ज्यों ही वह पहुँचता है तो वहाँ पहुँच कर वह बहुत ही हैरान हो जाता है क्योंकि उस दुसरे व्यक्ति की शक्ल उससे बिल्कुल मिलती थी , उसकी पत्नी भी उसको देखकर हैरान हो जाती है व् वह समझ नहीं पाती कि उसका पति इन दोनों में से कौन है ? अब उन दोनों व्यक्तियों में आपस में झगड़ा होना शुरू हो गया और वह दोनों उसे अपनी पत्नी बताने लगे ,थोड़ी ही देर में दोनों व्यक्ति हाथापाई पर उतारू हो गए तथा वहाँ पर काफी भीड़ जमा हो गई तथा इन एक जैसी शक्ल वाले व्यक्तियों का झगड़ा देखने लगे तथा इस तरह उन्हें झगड़ते हुए काफी समय बीत गया इसी बीच उस राज्य का एक सिपाही भी वहाँ पर आ गया। सिपाही ने फिर उस औरत से पूछा कि दोनों व्यक्तियों में से कौन उसका पति है, वह बेचारी मुश्किल में पड़ गई, क्योंकि दोनों व्यक्तियों शक्ल एक-दूसरे से एकदम से मिलती थी। अब उस असली पति को अपनी गलती का एहसास हुआ और अपनी पत्नी की इस तरह से बेइज्जत होने से उसे बहुत ही ग्लानि वाला भाव महसूस हुआ और उसने मन ही मन भगवन भोले नाथ को याद किया और इस दुविधा से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की और मन ही मन भविष्य में इस तरह की गलती न दोहराने की कसम खाई तथा यह सोच कर उसे रोना आ गया lउसने मन ही मन भगवन भोले नाथ से क्षमा मांगी और अपनी पत्नी की रक्षा की प्रार्थना की। और कहा कि उससे भूल हो गई जो वह बुधवार को अपनी पत्नी को घर लाया। भविष्य में ऐसा वह कभी नहीं करेगा ,ऐसी उसने मन ही मन प्रार्थना की। जैसे ही वह प्रार्थना खत्म हुई वैसे ही दूसरा व्यक्ति वहाँ से लोप हो गया और इस तरह वह व्यक्ति ख़ुशी ख़ुशी अपनी पत्नी के साथ लेकर अपने घर आ गया। उस दिन के पश्चात् दोनों पति-पत्नी विधिपूर्वक हर त्रयोदशी बुधवार को व्रत रखने लगे। और अपना जीवन सुख से व्यतीत करने लगे l
गुरु प्रदोष व्रत कथा
गुरु प्रदोष व्रत को व्रती उस दिन कर सकता है जिस दिन त्र्योदाशी के दिन गुरुवार अथवा वीरवार का दिन पड़ता हो गुरु प्रदोष व्रत की कथा इस प्रकार से है कि एक बार स्वर्ग का राजा इन्द्र और असुर वृत्रासुर की आपस में घनघोर लड़ाई हो गई और इस युद्ध में सारे देवता व् असुर सेना आपस में भीड़ गई lशुरू में तो देवताओं ने असुर सेना को धूल चटा दी यह देख कर असुर राज वृत्रासुर स्वयं युद्ध मैदान में उतर गया और उसने बहुत ही तीव्र वेग से देवताओं पर आक्रमण कर दिया तथा दैत्य-सेना ने देवताओं को मात दे दी l वृत्रासुर की असुरी माया से देव राज इंद्र अत्यंत व्याकुल हुआ वह तुरंत अपनी माया से देव गुरु बृहस्पति के पास पहुँच गया व् इस असुर से अपनी रक्षा करने का उपाय पूछा l देव गुरु बृहस्पति ने देवराज इंद्र को इस असुर के पूर्व जन्म की कथा सुनाई lबृहस्पति महाराज ने बताया कि पूर्व जन्म में असुर वृत्रासुर कोई साधारण व्यक्ति नही था वह एक बहुत ही बड़ा तपस्वी था lउसका वास्तविक नाम चित्ररथ था तथा वह एक राजा था उसने अपनी कठिन तपस्या से भगवान् भोले नाथ को प्रसन्न किया था और उसे भगवान भोले नाथ की असीम कृपा प्राप्त थी , इसी कारण उसे अपनी तपस्या व् शिव भक्ति पर बड़ा घमंड हो गया था तथा वह किसी भी मनुष्य को अपने से तुच्छ समझता था तथा वह हर मनुष्य का उपहास किया करता था l इसी क्रम में एक बार जब वह अपनी योगमाया के बल से कैलाश पर्वत से हो कर जा रहा था तो अपनी तुच्छ आदत के कारण राजा चित्ररथ ने भगवन भोलेनाथ व् माता पार्वती को कैलाश पर बैठे देखकर उनका उपहास करना शुरू किया
राजा चित्ररथ के उपहास करने पर भी शिव शंकर ने हंसकर टाल दिया व् चूँकि चित्र रथ भगवान् शिव शंकर का भक्त था इसलिए भोलेनाथ ने उसकी बातों पर ध्यान नही दिया परन्तु माता पार्वती जी क्रोधित हो गई व् वह अपने स्वामी का उपहास सहन नही कर सकी और बोलीं- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी देवों के देव महादेव के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है। मैं तुझे श्राप देती हूँ कि तू अभी असुर योनी में जन्म ले व् इसी वक्त तू निचे पाताल में समा जाये , उसी वक्त चित्ररथ पाताल में समां गया और उसका जन्म असुर योनी में हुआ ,और वही चितरथ इस जन्म में वृत्रासुर बना। देव गुरु आगे राजा इंद्र से बोले कि यह इस असुर की शिव भक्ति का ही प्रभाव है जो वह सभी देवताओं पर भारी पड़ गया l अतः हे ! इंद्र तुम अभी सच्चे मन से गुरु प्रदोष व्रत का संकल्प ले कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करो तुम्हारे सभी दुखों का निवारण यथा शीघ्र होगा l यह सुनकर देवराज इंद्र ने तुरंत ही सच्चे मन से गुरु प्रदोष व्रत का संकल्प लिया व अगाध श्रद्धा व् भक्ति भाव से शिव शम्भु भोले नाथ का सम्मरण किया जिसके प्रभाव से देवराज इंद्र की सेना ने असुर सेना पर विजय प्राप्त की व् वृत्रासुर को पराजित किया व् देवलोक में शांति की स्थापना की l
शुक्र प्रदोष व्रत कथा
शुक्रवार को पड़ने वाली त्रयोदशी के दिन व्रती शुक्र प्रदोष का व्रत करता है तथा शुक्र प्रदोष व्रत कथा इस प्रकार से है -प्राचीन काल में एक बड़े नगर में तीन घनिष्ट मित्र रहते थे। उन तीनो में एक राजा का बेटा, दूसरा ब्राह्मण का बेटा, व् तीसरा सेठका बेटा था। हालाँकि तीनो मित्रों का विवाह हो चुका था ,परन्तु सेठ के बेटे का विवाह के बाद अभी तक गौना नहीं हो पाया था, अर्थात उसकी पत्नी अभी अपने मायके में ही थी । एक दिन वह तीनों दोस्त आपस में स्त्रियों की बाते कर रहे थे। ब्राह्मण के बेटे ने सभीनारियों की प्रशंसा करते हुए कहा- “जिस घर में कोई औरत न हो वहाँ सदा दरिद्रता रहती है ” सेठ के बेटे ने जब यह वचन सुने तो तुरंत अपनी पत्नी को उसके मायके से लाने का निश्चय किया। सेठ का बेटा उसी समय अपने घर आया और अपने माता-पिता को अपने निश्चय के बारे में बताया।
कहा जाता है कि उस समय शुक्र देवता अस्त थे अर्थात डूबे हुए थे , इसलिए सेठ ने अपने बेटे को कहा की उसे अपनी पत्नी को इस समय मायके से वापस नही लाना चाहिए क्योंकि यह शुभ समय नहीं है , कोई भी इन दिनों बहु-बेटियों को उनके घर से विदा नहीं करता , जब शुक्रोदय हो जायेगा तत्पश्चात वह अपनी पत्नी को घर लाना। सेठ पुत्र ने अपने पिता की बात नही मानी और अपनी सुसराल जा पहुंचा। सास-ससुर भी अपने दामाद को समझाने लगे परन्तु वह नहीं माना। अतः उन्होंने विवश हो कर अपनी कन्या को दामाद के साथ विदा किया। अब जैसे ही वह दोनों पति पत्नी ससुराल से नगर से बाहर निकले ही थे कि थोड़ी दूर जाकर उनकी बैलगाड़ी का एक पहिया टूट गया और साथ ही बेलगाडी नीचे गिर गई व् बैल की भी टांग टूट गई। उसकी पत्नी को भी इस दुर्घटना में काफी चोटें आई। इस सब के बावजूद सेठ-पुत्र ने जैसे तैसे आगे चलने का प्रयत्न जारी रखा कि तभी रास्ते में डाकुओं से मुठभेड़ हो गई और डाकू उनका सारा धन लूटकर चलते बने । किसी तरह सेठ पुत्र अपनी पत्नी सहित अपने घर जा पहुंचा। परन्तु जैसे ही वह अपने घर पहुंचा वहाँ पर उसे सांप ने डस लिया। उसके सेठ पिता ने तुरंत वैद्यों को बुलाया। परन्तु उन्होंने उसे जांचने के बाद कहा कि उनका ये पुत्र मात्र तीन दिन बाद ही मर जाएगा। अब इस बात का पता ब्राह्मण पुत्र को लगा जाता है । ब्राह्मण पुत्र तुरंत सेठ के घर आ जाता है तथा सेठ से कहता है कहा कि आप आने पुत्र को उसकी पत्नी सहित वापस पत्नी के मायके भेज दो। इसी कारण ये सारी बाधाएं व् दुर्घटनाएं घटित हुई है क्योंकि इस समय शुक्रास्त है तथा आपका पुत्र इस अनुचित समय में पत्नी को विदा कर अपने घर लाया था , यदि अब यह अपने ससुराल अपनी पत्नी सहित पहुंच जाएगा तो इसका जीवन बच जाएगा। सेठ ने तुरंत ही ब्राह्मण पुत्र की बात मान ली और अपनी पुत्रवधु को अपने बेटे सहित पुत्रवधू के घर भेज दिया । सेठ-पुत्र जैसे ही अपने ससुराल पहुँचता है उसकी हालत ठीक हो गई। तत्पश्चात उन्होंने अपना शेष जीवन साथ में सुखपूर्वक बिताया और शिव् भोले नाथ की भक्ति की l
शनि प्रदोष व्रत कथा
शनि प्रदोष व्रत कथा के अनुसार , एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवार था जो बड़ी मुश्किल में अपना गुजर-बसर कर रहा था। उस ब्राहमण के दो पुत्र थे , उन दोनों पुत्रों में से एक पुत्र एक राजकुमार था जो कि अपना राज्य छिन जाने के बाद ब्राह्मण के घर रहने लगा था , उन दोनों पुत्रों का नाम धर्म व् शुचिव्रत था l एक दिन घोर गरीबी से परेशान हो कर ब्राह्मण की पत्नी अपने दोनों पुत्रों को लेकर शांडिल्य मुनि के आश्रम गईं। आश्रम पहुँच कर ब्राह्मण पत्नी ने ऋषि से अपनी आप बीती कही और प्रार्थना की कि ऋषिवर उनकी कोई साहयता करें ,उन्हें कोई उपाय बता दे जिससे उनकी गरीबी दूर हो जाए। मुनि शांडिल्य ने सारी स्थिति को जानकर ब्राहमण पत्नी को शनि प्रदोष व्रत कहने के लिए कहा। इस व्रत को शुरू किये अभी कुछ दिन ही बीते थे कि एक दिन छोटे पुत्र जिसका नाम शुचिव्रत था,को एक सोने से भरा हुआ बहुत बड़ा घड़ा मिला। और इसी तरह कुछ दिनों के बाद बड़े पुत्र धर्म की मुलाकात एक सुंदर गंधर्व कन्या से हुई। दोनों ने एक दूसरे को अपना जीवन साथी मान लिया lउस गन्धर्व कन्या ने राजकुमार को बताया कि वह विद्रविक गंधर्व की बेटी है , उसका नाम अंशुमति है। उधर एक दिन गन्धर्व राज विद्रविक के सपने में शिव भोले नाथ ने अपने दर्शन दिए और आदेश दिया कि वह अपनी पुत्री व् राजकुमार जो कि ब्राह्मण के घर रहता है ,उन दोनों का विवाह करवा दे lभगवान शिव के आदेश से गन्धर्व राज विद्रविक ने अपनी पुत्री अंशुमति का विवाह राजकुमार धर्म से करवा दिया और उसका राजपाट प्राप्त करने में उसकी पूर्ण सहायता की। इस तरह से शनि प्रदोष व्रत की पूजा करने व् शिवजी की आराधना करने से मनुष्य को सदा ही धन वैभव और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
रवि प्रदोष व्रत कथा
किसी गांव में एक बहुत गरीब ब्राह्मण रहता था। उस ब्राह्मण की पत्नी रविवार का प्रदोष व्रत किया करती थी, उसके एक ही पुत्र था। एक समय की बात है कि वह ब्राहमण पुत्र गंगा स्नान करने गया परन्तु दुर्भाग्यवश से उसे रास्ते में चोरों ने घेर लिया और उस से कहा कि अगर वह उन्हें उसका सारा धन दे देगा तो वे उसे मारेंगे नही और बिना किसी अन्य नुकसान के सुरक्षित उसे जाने देंगे , परन्तु ब्राहमण पुत्र ने उन चोरो को अपनी सारी सच्चाई बता दी , चोर उसकी बात कहाँ मानने वाले थे उन्होंने उसकी पूरी तलाशी ली , उसकी पोटली में केवल उन्हें कुछ रोटी के सूखे हुए टुकड़े ही मिले तो चोरो को उस पर दया आ गई तथा उन चोरो ने उसे बिना कोई नुकसान पहुंचाए बिना उसे गंगा स्नान के लिए जाने दिया । ब्राहमण पुत्र वहां से चलते हुए आगे एक नगर में जा पहुंचा। उस नगर के बाहर एक बरगद का पेड़ था। बरगद का पेड़ देखकर वह बालक बरगद के वृक्ष की छाया में गहरी नींद सो गया। कुछ समय बाद उस नगर के सिपाही कुछ चोरों की खोज में उस बरगद के वृक्ष से होकर गुजरे तो उन्हें वहाँ वह ब्राह्मण पुत्र सोया हुआ मिला , सिपाहियों ने उसे चोर समझकर बंदी बना लिया और उसे राजा के पास ले गए। राजा ने ब्राहमण पुत्र को कारावास में डालने का आदेश दिया। उधर ब्राहमण पुत्र की माता भगवान शिव शंकरजी का रवि प्रदोष व्रत कर रही थीl उस रात राजा को स्वप्न में दिखा कि यह बालक जो कि उसके कारावास में बंद है ,चोर नहीं हैl तथा उस बालक को तुरंत छोड़ने का आदेश राजा को स्वप्न में मिला अन्यथा ऐसा न करने पर उसका राज्य मिटटी में मिल जायेगा l राजा ने प्रातःकाल उस बालक के पास जाकर उसकी सच्चाई जानी , सच्चाई जान कर राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि वह तुरंत जाकर इस ब्राहमण पुत्र के माता-पिता को आदर पूर्वक यहाँ लेकर आ जाओ lसिपाहियों ने तुरंत राज आज्ञा का पालन करते हुए ब्राहमण दम्पति को राजा के समक्ष उपस्थित किया l राजा ने जब उन्हें देखा तो राजा को उन पर बड़ी दया आई तथा उन्हें पाँच गाँव उनके गुजर बसर के लिए दान में दे दिए lइस तरह शिवशंकर जी की कृपा से ब्राह्मण परिवार अब आनंदमय जीवन जीने लगा l इस तरह जो कोई भी रवि प्रदोष व्रत को करता है, उसे जीवन में आनंद प्राप्त होता है।
प्रदोष व्रत विधि
प्रदोष व्रत के दिन व्रती को सुबह व् शाम दोनों ही समय में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वतीजी की पूजा अर्चना करनी चाहिए है। शाम का समय व्रत पूजन के लिए सबसे बेहद शुभ होता है।
प्रदोष व्रत के दिन भक्तजन या व्रती सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठकर स्नान करें तत्पश्चात साफ़ वस्त्र धारण करेंl
- सूर्य देव को श्रधा भाव से जल अर्पण करें।
- शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग को गंगाजल ,बेलपत्र, दीप, धूप, अक्षत आदि द्वारा पूजन करें और प्रदोष व्रत का संकल्प लें।
- व्रती को पूरे दिनभर भोजन नही करना चाहिएl
- व्रती फलों का सेवन कर सकता है l
- पूजा स्थान को स्वच्छ जल या गंगाजल से पवित्र कर लें।
- आप पूजा स्थल पर रंगोली भी बना सकते हैl
- “ओम नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप भी कर सकते l
- प्रदोष व्रत कथा ( दिन के अनुसार )अवश्य ही सुनें अथवा पढ़े।
- भगवान शिवशंकर की आरती अवश्य करें।
- अंत में भगवान शिवशंकर जी को भोग लगाएं व् प्रसाद को सभी भक्तजनों में बांट दें।
प्रदोष व्रत का उद्यापन
विधि-विधान से प्रदोष व्रत को करने पर सभी शारीरिक व् मानसिक कष्ट दूर होते हैं और परम सुख की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत रखने वाले वर्ष भर लगभग की 26 त्रयोदशी के प्रदोष व्रत करने के बाद इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन के एक दिन पहले घर में गणेश पूजन कर भजन-कीर्तन, रात्रि जागरण आदि करें। दूसरे दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर भगवान् शिवशंकर व् माता पार्वतीजी की प्रतिमा स्थापित कर उनका पूर्ण वैदिक विधि से पूजन करें। ‘ऊं उमा सहिताय नमः शिवाय’ मन्त्र का उच्चारण करते हुए 108 बार खीर को अग्नि में आहुति दें। हवन के बाद किसी गरीब या कन्याओं अथवा जरुरत मंद को भोजन कराएँ व् श्रधा अनुसार दान-दक्षिणा दें l
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