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हस्त मुद्रा: केवल 7 हस्त मुद्राओं से करें शरीर के सभी रोग दूर
प्राचीन भारतीय योग ज्ञान और ध्यान विधियों में हस्त मुद्रा का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। संस्कृत शब्द “हस्त” (हाथ) और “मुद्रा” (posture) से मिलकर बना यह शब्द एक ऐसी विधि को दर्शाता है जिसमें उंगलियों और हाथों को विशेष posture में रखकर शरीर में ऊर्जा प्रवाह को गतिमान किया जाता है।
यह प्राचीन अभ्यास योग, आयुर्वेद और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा के सिद्धांतों में गहरे से जुड़ा हुआ है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण को बढ़ावा देने का एक प्राकृतिक और आसान तरीका प्रदान करता है,जिसे हर कोई कहीं भी कर सकता है।
हस्त मुद्रा हाथों के लिए योग का एक रूप है, जिसमें विभिन्न उंगलियों के संयोजन बनाकर शरीर की ऊर्जा को गतिमान किया जाता है। इन मुद्राओं को करने का अभ्यास इस आधार पर आधारित है कि प्रत्येक उंगली पांच महाभूतों में से एक से जुड़ी होती है और हमारे अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है। इन हाथों की विभिन्न मुद्राओं को बनाकर, अभ्यासकर्ता का लक्ष्य शरीर में जीवन ऊर्जा, या प्राण को संतुलित और नियंत्रित करना होता है।
हस्त मुद्रा के पीछे का विज्ञान
हालांकि हस्त मुद्राओं की जड़ें प्राचीन आध्यात्मिक विचारधाराओं में हैं। अनुसंधान से पता चलता है कि विशेष हस्त मुद्राओं से मानसिक अवस्थाओं को संतुलित किया जा सकता है, तंत्रिका मार्गों को प्रभावित किया जा सकता है और शारीरिक कार्यों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा, इन हस्त मुद्राओं के दौरान लगाया गया दबाव एक्यूप्रेशर और रिफ्लेक्सोलॉजी के सिद्धांतों के समान प्रतिक्रिया बिंदुओं को सक्रिय करता है।
हस्त मुद्रा के लाभ:
- तनाव और चिंता को कम करता है l
- एकाग्रता और स्मृति में सुधार करता है l
- शरीर के ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है l
- नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है l
- पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है l
- विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों से राहत प्रदान करता है l
हस्त मुद्रा का अभ्यास कैसे करें:
- एक शांत और आरामदायक जगह ढूंढें।
- अपनी रीढ़ को सीधा रखकर बैठें या लेटें।
- अपनी आंखें धीरे से बंद करें और एक गहरी सांसें लें।
- अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे वांछित मुद्रा में लाएं।
- कुछ मिनटों के लिए मुद्रा को बनाए रखें, अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करें।
- धीरे-धीरे अपनी उंगलियों को खोलें और आराम करें।
इन 7 हस्त मुद्राओं से करें शरीर के सभी रोग दूर
ज्ञान मुद्रा: बुद्धि और एकाग्रता की कुंजी
संस्कृत में ज्ञान का अर्थ बुद्धिमत्ता होता है। ज्ञान मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से अभ्यासकर्ता की बुद्धि में वृद्धि होती है, इसलिए इसे अंग्रेजी में “मुद्रा ऑफ नॉलेज” भी कहा जाता है। ध्यान करते समय और प्राणायाम करते समय योग से अधिकतम के लिए इस मुद्रा का अभ्यास किया जाता है।
ज्ञान मुद्रा करने की विधि:
- सबसे पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर एक दरी/चटाई या योगा मैट बिछा दें।
- अब सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठ जाएं। ज्ञान मुद्रा को खड़े रहकर ताड़ासन में या कुर्सी पर बैठकर भी किया जा सकता है। ज्ञान मुद्रा का अधिक लाभ मिलने के लिए इसे सुखासन या पद्मासन में बैठकर करना चाहिए।
- अपने हाथों को घुटनों पर रख कर और दोनों हाथों की हथेलियाँ आकाश की तरफ रखें ।
- अब तर्जनी उंगली (इंडेक्स फिंगर) को गोलाकार मोड़कर अंगूठे (थम्ब) के अग्रभाग को स्पर्श करना है।
- अन्य तीनों उंगलियों को सीधा रखना है।
- यह ज्ञान मुद्रा दोनों हाथों से करना है।
- आंखें बंद कर नियमित श्वास करना है।
- आप चाहें तो साथ में “ॐ” का उच्चारण भी कर सकते हैं। मन से सारे विचार निकालकर मन को केवल “ॐ” पर केंद्रित करना है।
- दिनभर में कम से कम 30 मिनट से 45 मिनट करने पर लाभ मिलता है। एक साथ इतना समय न मिलने पर आप 10-10 मिनट के 3 टुकड़ों में इसका अभ्यास कर सकते हैं।
- इस मुद्रा को हम किसी भी समय कर सकते हैं परन्तु सुबह के समय और शाम को इस मुद्रा को करना विशेष फलदायी होता है l
ज्ञान मुद्रा के लाभ:
- बुद्धि और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।
- एकाग्रता बढ़ती है।
- इस मुद्रा से शरीर रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधक हो जाता है।
- ज्ञान मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से सारे मानसिक विकार जैसे क्रोध, भय, शोक, ईर्ष्या इत्यादि से छुटकारा मिलता है।
- ध्यान/मेडीटेशन करने के लिए उपयुक्त मुद्रा है।
- आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
- मन को शांति प्राप्त होती है।
- अनिद्रा, सिरदर्द और माइग्रेन से पीड़ित लोगों के लिए उपयोगी मुद्रा है।
- ज्ञान मुद्रा से वायु महाभूत बढ़ता है, इसलिए इसे वायु वर्धक मुद्रा भी कहा जाता है। वात प्रवृत्ति वाले लोगों ने इसका अभ्यास मर्यादित प्रमाण में करना चाहिए।
ज्ञान मुद्रा का अभ्यास करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- अगर आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो इस मुद्रा का अभ्यास करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
- महिलाएं गर्भावस्था के दौरान इस मुद्रा को न करें l
- अगर आपको हाथों में दर्द या कोई चोट है, तो इस मुद्रा का अभ्यास न करें।
- ज्ञान मुद्रा का अभ्यास करते समय शांत और आरामदायक जगह पर बैठें।
- अपनी रीढ़ हड्डी को एकदम से सीधा रखें।
- अपनी आँखों को बंद करें और अपनी साँसों पर ध्यान लगाएं।
- अपने मन को शांत रखें और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करें।
वायु मुद्रा: वायु तत्व को संतुलित करने की शक्तिशाली मुद्रा
परिचय:
हमारे शरीर और मन को बनाने वाले पांच मौलिक तत्वों में से एक है वायु या हवा। वायु मुद्रा हवा तत्व को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
वायु तत्व का महत्व:
वायु तत्व गति, विस्तार और सूखेपन से जुड़ा होता है। यह श्वास और परिसंचरण को नियंत्रित करता है। वात दोष वायु और आकाश तत्वों से बना होता है और यह पित्त और कफ दोषों के लिए प्रेरक होता है।
वायु मुद्रा के लाभ:
- श्वास और परिसंचरण में सुधार: वायु मुद्रा श्वसन प्रणाली को मजबूत करती है और रक्त प्रवाह को बेहतर बनाती है।
- पाचन क्रिया में सुधार: यह मुद्रा पाचन तंत्र को उत्तेजित करती है और अपच और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत दिलाती है।
- तनाव और चिंता को कम करना: वायु मुद्रा मन को शांत करती है और तनाव और चिंता को कम करने में मदद करती है।
- एकाग्रता और स्मृति में सुधार: यह मुद्रा एकाग्रता और स्मृति को बेहतर बनाने में सहायक होती है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना: वायु मुद्रा रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती है और बीमारियों से लड़ने में मदद करती है।
- अस्थमा और गठिया से राहत: यह मुद्रा अस्थमा और गठिया के लक्षणों को कम करने में सहायक होती है।
वायु मुद्रा कैसे करें:
- आरामदायक मुद्रा में बैठें।
- अपने हाथों को अपनी घुटनों पर रखें, हथेलियां ऊपर की ओर।
- अपनी तर्जनी के शीर्ष को अपने अंगूठे के आधार पर स्पर्श करें।
- बाकी उंगलियों को सीधा रखें।
- धीरे-धीरे और गहराई से सांस लें।
- इस मुद्रा को 15-30 मिनट तक करें।
वायु मुद्रा का अभ्यास करते समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें:
- अगर आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो इस मुद्रा का अभ्यास करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
- महिलाएं गर्भावस्था के दौरान यह मुद्रा न करे l
- अगर आपको हाथों में दर्द या कोई चोट है, तो इस मुद्रा का अभ्यास न करें।
- शांत और आरामदायक जगह पर बैठें।
- अपनी रीढ़ हड्डी को एकदम सीधा रखें।
- अपनी आंखें को बंद करें और एकाग्रचित होकर अपनी साँसों पर ध्यान लगाएं l
- अपने मन को शांत रखें और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करें।
वायु मुद्रा एक सरल और प्रभावी तरीका है जिससे आप अपनी स्वास्थ्य और well-being में सुधार कर सकते हैं। यह मुद्रा सभी के लिए फायदेमंद है, खासकर उन लोगों के लिए जो वायु तत्व से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं।
सूर्य मुद्रा: सूर्य की शक्ति का उपयोग करके स्वास्थ्य और जीवन शक्ति को बढ़ाएं
परिचय:
पृथ्वी पर हर जीवित प्राणी अपनी स्थायी ऊर्जा के लिए सूर्य पर निर्भर है। योग में, कई तकनीकें हैं जो शरीर में सूर्य की ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करती हैं, और उनमें से एक है सूर्य मुद्रा।
सूर्य मुद्रा का महत्व:
योग मुद्राओं की विशाल श्रृंखला में, प्रत्येक मुद्रा का अपना विशिष्ट लाभ होता है। कुछ मुद्राएं उपचार के लिए होती हैं, जबकि अन्य विशिष्ट स्वास्थ्य समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
सूर्य मुद्रा, जिसे “वजन घटाने की मुद्रा” भी कहा जाता है, एक दैनिक अभ्यास है जो पेट के अंगों की कार्यक्षमता में सुधार कर सकता है।
सूर्य मुद्रा का अर्थ:
“सूर्य” शब्द संस्कृत से आता है और इसका अर्थ है “सूर्य”, जबकि “मुद्रा” का अर्थ है “हस्त चिन्ह”। इसलिए, सूर्य मुद्रा शक्तिशाली सूर्य किरणों द्वारा हमारे शरीर को प्राप्त ऊर्जा का प्रतीक है, जिसमें अग्नि तत्व सूर्य की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। संस्कृत में, अग्नि को “अग्नि” कहा जाता है, इसलिए सूर्य मुद्रा को “अग्नि मुद्रा” भी कहा जाता है।
सूर्य मुद्रा कैसे करें:
- आप इसे किसी भी योगासन के दौरान कर सकते हैं यदि आप आरामदायक महसूस करते हैं।
- एक आरामदायक ध्यान मुद्रा (सुखासन या पद्मासन) में बैठकर शुरू करें।
- अपनी गर्दन और रीढ़ को एकदम सीधा रखें।
- अपनी दोनों हथेलियों को अपनी गोद में रखें।
- अपनी आँखें धीरे-धीरे बंद करें।
- अपनी आंतरिक दृष्टि को महसूस करें।
- गहरी और लंबी सांस लें। प्रत्येक सांस के साथ, अपनी सांसों की गहराई को बढ़ाते हुए धीरे-धीरे सांस लें।
- अपनी तर्जनी को अपनी हथेली के अंदर मोड़ें और इसे अपने अंगूठे के आधार से स्पर्श करें।
- अपनी हथेली को मुट्ठी में बंद किए बिना, बाकी उंगलियों को सीधा रखें।
- इस मुद्रा को 15-30 मिनट तक करें।
सूर्य मुद्रा के लाभ:
- यह शरीर की ऊर्जावान बनाने में मदद करता है।
- यह शरीर का तापमान बढ़ाकर और रक्त शर्करा को कम करके वजन घटाने में मदद करता है।
- यह भूख को बढ़ाने में मदद करता है, जो उन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है जो भूख न लगने या एनोरेक्सिया से पीड़ित हैं।
- यह मांसपेशियों की थकान को दूर करने में मदद करता है।
- यह एक सुंदर व्यक्तित्व विकसित करने में मदद करता है।
- यह शरीर को गर्म करता है और सर्दी से लड़ने में मदद करता है।
- यह आंखों की समस्याओं के इलाज में मदद कर सकता है।
- आप सूर्य मुद्रा का अभ्यास दिन में दो बार, सुबह और शाम को कर सकते हैं।
- यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो इस मुद्रा का अभ्यास करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
- गर्भवती महिलाओं को इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए
लिंग मुद्रा: आत्मा की ऊर्जा को जागृत करने और ध्यान को बढ़ाने के लिए शक्तिशाली योग मुद्रा
परिचय:
लिंग मुद्रा एक शक्तिशाली योग मुद्रा है जो शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने और आत्मा की ऊर्जा को उत्तेजित करने में मदद करती है। यह मुद्रा प्राणवायु के विकास को बढ़ाती है और शक्ति को अधिक कारगर बनाती है।
लिंग मुद्रा का महत्व:
लिंग मुद्रा को शिवलिंग मुद्रा भी कहा जाता है। इस मुद्रा में, व्यक्ति को अपने हाथों को एक साथ मिलाने की आवश्यकता होती है, जिससे शिवलिंग की भावना होती है। इस मुद्रा को करने से व्यक्ति का ध्यान बढ़ता है और उसकी अंतरात्मा का संबंध मजबूत होता है।
लिंग मुद्रा की विधि:
- सबसे पहले, आरामदायक ध्यान मुद्रा में बैठें।
- अपने शरीर को धीरे-धीरे ध्यान दें और गहरी सांस लें।
- अब, अपने हाथों को आपस में मिलाएं और उन्हें अपनी उंगलियों के बीच में बांधें।
- हाथों को मिलाकर, अपने हाथों को अपनी पीठ के पीछे ढ़ालें और ध्यान करें।
- सांसों को गहराई से लें और अपनी ध्यानशक्ति को विशेष ध्यान दें।
- इस मुद्रा को 15-20 मिनट तक करें और ध्यान में रहें।
लिंग मुद्रा के लाभ:
- शरीर में ऊर्जा का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
- ध्यान को बढ़ाता है और आंतरिक शांति प्रदान करता है।
- हमें मानसिक चिंताओं तथा तनाव से मुक्त करता है।
- प्राणवायु को विकसित करता है और ऊर्जा को बढ़ाता है।
लिंग मुद्रा को नियमित रूप से अभ्यास करने से आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य मजबूत होता है और आपका ध्यान भी अधिक शक्तिशाली होता है।
- आप लिंग मुद्रा का अभ्यास दिन में दो बार, सुबह और शाम को कर सकते हैं।
- यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो इस मुद्रा का अभ्यास करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
- गर्भवती महिलाओं को इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए.
ध्यान रखें:
- मुद्रा करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
- अपनी आँखें बंद करें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
- अपने मन को शांत रखें और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करें।
पृथ्वी मुद्रा: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण योग मुद्रा
परिचय:
पृथ्वी मुद्रा एक प्रमुख योग मुद्रा है जो शरीर में पृथ्वी तत्व की ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करती है। यह मुद्रा प्राकृतिक रूप से हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में सहायक होती है।
पृथ्वी मुद्रा का महत्व:
पृथ्वी मुद्रा को गहरी संध्या और सुकून भरे वातावरण में करना लाभकारी होता है। इस मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में पृथ्वी तत्व का संतुलन बना रहता है, जिससे विवेक और शांति मिलती है।
पृथ्वी मुद्रा की विधि:
- सबसे पहले, आरामदायक स्थिति में बैठें।
- अपने हाथों को आपके जांघों पर रखें, पालम्स को आकाश की ओर देखने के लिए।
- अब अपनी अंगुलियों को अपनी थांभ में मिलाएं, इसे धीरे-धीरे और ध्यानपूर्वक करें।
- ध्यान और सांस के साथ मुद्रा को 15-20 मिनट तक बनाए रखें।
पृथ्वी मुद्रा के लाभ:
- शरीर में पृथ्वी तत्व के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।
- शारीरिक और मानसिक संतुलन को बढ़ाता है और चिंता और तनाव को कम करता है।
- प्राकृतिक रूप से विवेक और शांति को बढ़ावा देता है।
- अनुभव में संवेदनशीलता और स्थिरता को बढ़ावा देता है।
पृथ्वी मुद्रा को नियमित रूप से अभ्यास करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुधारा जा सकता है और आपका जीवन एक स्वस्थ और संतुलित दिशा में प्रगट हो सकता है।
- आप पृथ्वी मुद्रा का अभ्यास दिन में दो बार, सुबह और शाम को कर सकते हैं।
- यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो इस मुद्रा का अभ्यास करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
- गर्भवती महिलाओं को इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए.
ध्यान रखें:
- मुद्रा करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
- अपनी आँखें बंद करें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
- अपने मन को शांत रखें और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करें।
प्राण मुद्रा: ऊर्जा और शांति का द्वार खोलने वाली योग मुद्रा
परिचय:
प्राण मुद्रा एक प्रमुख योग मुद्रा है जो ऊर्जा को बढ़ाने और शांति प्राप्त करने में मदद करती है। इस मुद्रा को करने से प्राण शक्ति का संतुलन होता है और शरीर में ऊर्जा की आपूर्ति में वृद्धि होती है।
प्राण मुद्रा का महत्व:
प्राण मुद्रा को गहरी संध्या और सुकून भरे वातावरण में करना लाभकारी होता है। इस मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में प्राण शक्ति का संतुलन बना रहता है, जो कि हमारे शरीर और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।
प्राण मुद्रा की विधि:
- सबसे पहले, आरामदायक स्थिति में बैठें।
- अपने हाथों को आपके जांघों पर रखें, हथेलियां ऊपर की ओर।
- अब अपनी अंगुलियों को अपनी थांभ में मिलाएं, इसे धीरे-धीरे और ध्यानपूर्वक करें।
- ध्यान और सांस के साथ मुद्रा को 15-20 मिनट तक बनाए रखें।
प्राण मुद्रा के लाभ:
- ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करता है और शांति को प्राप्त करने में सहायक होता है।
- शारीरिक और मानसिक संतुलन को बढ़ावा देता है।
- चिंता और तनाव को कम करता है और मन को शांत करता है।
- प्राण शक्ति का संतुलन बनाए रखता है और शरीर में ऊर्जा की संचार को सुचारू रूप से बनाए रखता है।
प्राण मुद्रा को नियमित रूप से अभ्यास करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और आपका जीवन स्वस्थ और संतुलित बनता है।
- आप प्राण मुद्रा का अभ्यास दिन में दो बार, सुबह और शाम को कर सकते हैं।
- यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो इस मुद्रा का अभ्यास करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
- गर्भवती महिलाओं को इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए.
ध्यान रखें:
- मुद्रा करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
- अपनी आँखें बंद करें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
- अपने मन को शांत रखें और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करें।
अगर आप नियमित रूप से प्राण मुद्रा का अभ्यास करते हैं, तो आपको निश्चित रूप से इसके लाभ दिखाई देंगे।
प्राण मुद्रा के लाभ:
- एकाग्रता और यादाश्त को बढ़ाता है l
- पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।
- रक्तचाप को संतुलित व् नियंत्रित करता है l
- अनिद्रा से राहत दिलाता है।
- प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है।
यह मुद्रा सभी के लिए फायदेमंद है, खासकर उन लोगों के लिए जो ऊर्जा की कमी, थकान, तनाव और चिंता से जूझ रहे हैं।
वरुण मुद्रा: जल तत्व की ऊर्जा का संतुलन बनाकर स्वास्थ्य और जीवन शक्ति को बढ़ाएं
परिचय:
“वरुण मुद्रा” एक प्रमुख योग मुद्रा है जो शरीर में जल तत्व की ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करती है। इस मुद्रा का अभ्यास करने से शरीर में जल तत्व की आपूर्ति में वृद्धि होती है और ऊर्जा का संतुलन बना रहता है।
वरुण मुद्रा का महत्व:
जल तत्व जीवन के लिए आवश्यक है। यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने, पाचन क्रिया को सुचारू रूप से चलाने और शरीर को हाइड्रेटेड रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। “वरुण मुद्रा” का अभ्यास करके आप शरीर में जल तत्व की ऊर्जा को संतुलित कर सकते हैं और इसके कई लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
“वरुण मुद्रा” की विधि:
- सबसे पहले, आरामदायक स्थिति में बैठें।
- अपने हाथों को आपके जांघों पर रखें, हथेलियां ऊपर की ओर।
- अब अपनी अंगुलियों को अपनी थांभ में मिलाएं, इसे धीरे-धीरे और ध्यानपूर्वक करें।
- ध्यान और सांस के साथ मुद्रा को 15-20 मिनट तक बनाए रखें।
“वरुण मुद्रा” के लाभ:
- जल तत्व की ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करता है और शारीरिक और मानसिक संतुलन को बनाए रखता है।
- चिंता और तनाव को कम करता है और मन को शांत करता है।
- प्राकृतिक रूप से शरीर को शीतलता प्रदान करता है और ऊर्जा की संचार को सुचारू रूप से बनाए रखता है।
- शरीर को सुंदर, स्वस्थ और जवान बनाता है।
- पाचन क्रिया को सुचारू रूप से चलाता है।
- शरीर को हाइड्रेटेड रखता है।
- प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है।
“वरुण मुद्रा” को नियमित रूप से अभ्यास करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और आपका जीवन स्वस्थ और संतुलित बनता है।
- आप “वरुण मुद्रा” का अभ्यास दिन में दो बार, सुबह और शाम को कर सकते हैं।
- यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो इस मुद्रा का अभ्यास करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
- गर्भवती महिलाओं को इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए.
ध्यान रखें:
- मुद्रा करते समय अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें।
- अपनी आँखें बंद करें और अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
- अपने मन को शांत रखें और सकारात्मक विचारों पर ध्यान केंद्रित करें।
अगर आप नियमित रूप से “वरुण मुद्रा” का अभ्यास करते हैं, तो आपको निश्चित रूप से इसके लाभ दिखाई देंगे।
वरुण मुद्रा के अन्य लाभ :
- थकान और कमजोरी को दूर करता है।
- अनिद्रा से राहत दिलाता है।
- मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
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