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सोमवार व्रत कथा
सोमवार व्रत कथा भगवान श्री शिवशंकर जी का आशीर्वाद पाने का एक बहुत ही सरल तथा प्रभावी उपाय हैl इस सोमवार व्रत की अनोखी कथा के श्रवण मात्र से मनुष्य की हर मनोकामना पूरी हो जाती है l इस लेख में जानें सोमवार व्रत करने की विधि, इसके लाभ और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने की सोमवार व्रत की क्षमता के बारे में।
सोमवार व्रत कथा जाने और पाएं जीवन में मनचाही सफलता
एक बार की बात है कि एक बहुत बड़े नगर में एक धनी साहूकार रहता था जिसके पास आकूट धन दौलत थाl वह इतना अधिक धनवान होने के बावजूद भी काफी दुखी व् परेशान रहता था क्योंकि वह साहूकार निः संतान था ,उसके कोई संतान न होने के कारण वह बहुत चिंतित व् दुखी रहा करता था। अपनी संतान प्राप्ति की इच्छा लिए वह साहूकार प्रत्येक सोमवार को सोमवार व्रत किया करता था और पूरी श्रद्धा व् भक्ति भाव से भगवान शिवशंकर और माता पार्वतीजी की पूजा अर्चना किया करता था ।
साहूकार की इस भक्ति भावना से माता पार्वतीजी बहुत ज्यादा प्रसन्न हुई और उन्होंने भगवान शिवशंकर से साहूकार की संतान प्राप्ति की मनोकामना को पूर्ण करने के लिए आग्रह किया।
जैसा कि हम सब जानते हैं हमारे शिवशंकर को हम सब भोलेनाथ भी कहते हैं फिर भी भगवान शिवशंकर ने माता पार्वतीजी को यह समझाने का प्रयास किया कि “हे! पार्वती इस संसार में हर व्यक्ति को उसके कर्मों के परिणाम की भोगना भोगनी ही पड़ती है। इस तरह जो भी अथवा जिस भी व्यक्ति को जो हासिल है चाहे वह दुःख हो या सुख सभी उसके कर्मों का फल ही हैl” भगवान शिवशंकर की बात तो माता पार्वतीजी ने सुनी पर वे अभी भी साहूकार की दुःख पीड़ा का हरण करना चाहती थीं तथा उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा को पूर्ण करना चाहती थी।
देवी पार्वतीजी के बार – बार आग्रह व् अनुनय किए जाने पर भगवान शिवशंकर ने साहूकार को एक पुत्र प्राप्ति का वरदान तो दे दिया परंतु साथ ही शिवशंकर ने यह भी बताया कि वह बालक अल्पायु होगा , वह केवल बारह वर्ष तक ही इस भूलोक पर जीवित रह सकता था। कहा जाता है कि इस दौरान वह धनी साहूकार भगवान शिवशंकर और माता पार्वतीजी की सभी बातें चुपके से सुन रहा था। परन्तु दोनों की बातों को सुनकर भी साहूकार मन से एकदम शांत व् स्थिर बना रहा उसे न तो इस बात की प्रसन्नता हुई और न ही कोई दुख। वह साहूकार अब फिर से पूरे मन व् भक्ति भाव से भगवान शिवशंकर और माता पार्वतीजी की पूजा-अर्चना करने लगा ।
कुछ समय पश्चात् शिवशंकर जी के वरदान के फलस्वरूप उस धनी साहूकार के घर एक अति सुंदर पुत्र ने जन्म लिया।इस तरह समय चक्र चलता रहा और देखते ही देखते वह पुत्र अब ग्यारह वर्ष का हो गया था ,अब जब साहूकार का पुत्र ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसकी शिक्षा दीक्षा हेतु उसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी भेजने का साहूकार ने निर्णय लिया तथा साहूकार ने अपने पुत्र को उसके मामा के साथ भेजने उसके मामा को उचित धन दिया और निर्देश दिया जाओ और इसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए काशी नगर ले जाओ, चूँकि साहूकार को भगवान् शिव शम्भू जी का वरदान भी याद था उस करके उसने बालक के मामा का कहा कि जाते – जाते मार्ग में यज्ञ व् पूजा-पाठ भी करवाते रहना , तथा जहां भी यज्ञ कराओ वहां सभी ब्राह्मणों व् गरीबों को भोजन और दान -दक्षिणा भी अवश्य देते हुए जाना ।
इस तरह वह दोनों मामा व् भांजा पूरे रास्ते में यज्ञ करते हुए और ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन व दक्षिणा देते हुए काशी नगर की ओर निकल पड़े । वहीं उसी रस्ते में एक नगर पड़ता था जहाँ एक सुंदर कन्या का विवाह हो रहा था पर विधाता का विधान देखिये जिस राजकुमार के साथ कन्या का विवाह होने जा रहा था वह राजकुमार एक आंख से काना अथवा अँधा था।
परन्तु राजकुमार के राजा पिता ने अपने बेटे की एक आंख से अंधे होने की बात को सब लोगो से छुपा कर रखा था और किसी को यह बात पता न चले , राजा ने एक चाल सोची, उसने जब वहाँ पर पहुंचे दोनों मामा-भांजा को देखा तो उसने साहूकार के पुत्र को देखकर सोचा कि क्यों न इस युवक को अपने पुत्र के स्थान पर बिठाकर कर उस सुंदर कन्या से विवाह करा लिया जाए और फिर फिर विवाह होने के बाद साहूकार के पुत्र को पैसे देकर इसे वापिस भेज दूंगा और राजकुमारी को अपने राजकुमार पुत्र के साथ ले जाऊंगा। और इस प्रकार से साहूकार के पुत्र को अपना पुत्र बताकर उसके साथ के साथ उस सुंदर कन्या का विवाह करा दिया गया।
साहूकार के बेटे ने विवाह तो कर लिया परंतु अंदर ही अंदर अपने इस कपट के लिए दुखी हुआ तथा वह अपनी ईमानदारी कायम रखना चाहता था। उसे लगा कि उसके द्वारा किया गया यह कार्य किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं है। तथा उसने किसी तरह से यह बात बताने के लिए राजकुमारी की चुनरी के पल्ले पर लिख दी और लिखा कि हे ! राजकुमारी तुम्हारा विवाह मेरे साथ तो हो रहा है परंतु वह राजकुमार नहीं हूं जिसके साथ तुम्हारा विवाह निश्चित हुआ है । क्योंकि असली राजकुमार एक आंख से काना है और मैं तो यहां काशी नगर में शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से आया हूं चूँकि मै राजा की बातों में आकर फंस गया हूँ परन्तु अब मुझे अपने इस कृत्य की ग्लानि हो रही है अतः ये बात मैंने तुम्हारी चुनरी में लिख दी है ।
इस तरह से जब राजकुमारी को सारी बात पता चली तो उसने तुरंत अपने माता-पिता को सारी बात बताई। यह बात सुनकर राजा ने अपनी बेटी की शादी उस काने राजकुमार से करने से मना कर दिया तथा राजा ने अपनी बेटी को विदा नहीं किया और इस तरह बारात खाली हाथ वापिस अपने घर लौट गई। और साथ ही दोनों मामा- भांजा भी शिक्षा के लिए काशी नगर की ओर चल पड़े l जब वह दोनों काशी नगर में पहुंचे तो पहुंचते ही उन्होंने वहाँ पर एक विशाल यज्ञ का आयोजन करने का निर्णय लिया। और इस तरह जिस दिन यह यज्ञ हो रहा था उसी दिन लड़के की आयु बारह वर्ष पूर्ण होनी थी। इस पर लड़के ने अपने मामा को बताया कि वह आज बिल्कुल स्वस्थ महसूस नहीं कर रहा है। इस पर मामा ने भांजे को जाकर आराम करने के लिए कहा।
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और देखते ही देखते भगवान शिवशंकर के वरदान के अनुसार जैसे ही बालक पुरे बारह वर्ष का पूरा हुआ वैसे ही उस बालक के प्राण निकल गए। इस घटना से मामा को बहुत दुःख हुआ और मामा ने मृत भांजे को देखकर विलाप करना शुरू कर दिया। अब जरा शिव शम्भू की माया देखिये कि संयोग उस समय शिवशंकर जी और माता पार्वतीजी वहां से गुजर रहे थे, तो जोर से कहिये माता पार्वतीजी और भगवन भोलेनाथ की सदा ही जय !
जब माता पार्वतीजी और भोले बाबा ने निकट जाकर देखा तो उन्हें मालूम हुआ कि यह तो वही धनी साहूकार का पुत्र है जिसे उन्होंने अर्थात शिवशंकर जी ने केवल बारह वर्ष तक ही जीवित रहने का वरदान दिया था। यह सब देख कर माता पार्वतीजी अत्यंत भाव विभोर हो उठी और उन्होंने भगवान शिवशंकर से आग्रह किया कि “हे! प्रभु ,हे!जगत के स्वामी ,ये कैसा अनर्थ है ,आप इस बालक पर दया दिखाए अपने इस भक्त को जीवन प्रदान करें,स्वामी आपका यह भक्त सदा ही आपकी भक्ति करता है ,इसके माता – पिता इसकी इस अकाल मृत्यु के वियोग को कभी भी सहन नहीं कर पाएंगेl”
माता पार्वतीजी के आग्रह किए जाने पर भगवान शिवशंकर ने साहूकार के बेटे को फिर से जीवनदान दे दिया,
तो जोर से कहिये माता पार्वतीजी और भगवन भोलेनाथ की सदा ही जय !
इसके पश्चात् काशी से अपनी शिक्षा समाप्त कर जब दोनों मामा व् भांजा अपने घर की ओर निकले तो सबसे पहले जब उस नगर में पहुँचते हैं जहां कि उस राजा के लड़के का विवाह निरस्त हुआ था। वहां पहुंचकर उन्होंने फिर से एक यज्ञ का आयोजन किया और इसी यज्ञ में राजकुमारी के पिता भी पहुंचे हुए थे तो उन्होंने उस लड़के को पहचान लिया और उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह का प्रस्ताव लड़के से करने का रखा जिस पर मामा व् भांजा दोनों राजी हो गए इस तरह से साहूकार के पुत्र का विवाह राजकुमारी से हो गया और राजा ने दोनों को खुशी खुशी विदा कर दिया।
और जब वह तीनों लोग अपने घर पहुंचे तो वहां साहूकार और उसकी पत्नी अपने पुत्र के लौटने का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे साथ ही उन्होंने यह प्रण लिया हुआ था कि अगर उनका पुत्र अगर जीवित नहीं रहेगा तो वह दोनों भी अपने प्राण छोड़ देंगेl परन्तु जब साहूकार और उसकी पत्नी ने बेटे को जीवित तथा उसके जीवित होने की कहानी का उन्हें पता चला तो साहूकार ख़ुशी से रोने लगा तथा भगवन शिव शम्भु को कोटि कोटि धन्यवाद किया l
और इस तरह उसी रात को जब साहूकार सो रहा था तो उसके सपने में भगवान शिवशंकर जी ने दर्शन दिए और कहा कि हे! साहूकार मैंने तेरे नित्य सोमवार के व्रत और तेरी सच्ची श्रद्धा व् भक्ति भाव से प्रसन्न होकर तेरे बालक का जीवन बक्शा है व् उसे लंबी आयु फिर से प्रदान की है।
अतः इस तरह जो भी व्यक्ति या भक्तजन नित्य सोमवार का व्रत ( Somwar ka Vrat ) का सच्चे मन से संकल्प लेकर पुरे विधि विधान से इस व्रत का पालन करता है व् अपने सच्चे मन से, पूर्ण भक्ति भाव से भगवान शिवशंकर और माता पार्वतीजी की वन्धना करता है उसकी सभी मनोकामनाए शीघ्र अतिशीघ्र पूर्ण होती हैं तो जोर से कहिये माता पार्वतीजी और भगवन भोलेनाथ की सदा ही जय !
सोमवार व्रत की विधि क्या है?
सोमवार व्रत की विधि: नारद पुराण के अनुसार मार्गदर्शन (Somvar Vrat Ki Vidhi: Guidance According to Narad Purana)
सोमवार व्रत भगवान शिवशंकर को प्रसन्न करने का एक बहुत ही सरल और प्रभावी उपाय है। नारद पुराण में इस व्रत की विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस लेख में, हम नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत की विधि को विस्तार से समझेंगे।
प्रातः कालीन स्नान और पूजन (Morning Bath and Worship)
सर्व प्रथम आप प्रातःकाल जल्दी से उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
घर के मंदिर में शिव जी की प्रतिमा स्थापित करें।
जल, बेल पत्र, धुप , दीप,दूध आदि से शिव जी का पूजन करें।
सोमवार कथा को सुने और साथ ही उसका उच्चारण पुरे मनोयोग के साथ करें आप चाहे तो शिव चालीसा का पाठ करें या “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप अथवा आप शिव आरती भी गा सकते हैं l
सोमवार व्रत का पालन कैसे करें (Observing the Fast)
व्रत के दिन सात्विक भोजन ग्रहण करें।
प्याज, लहसुन, मदिरा व् मांस आदि निषेध भोजन का सेवन न करें।
यदि आप निर्जला व्रत रख रहे हैं, तो पानी भी न पिएं।
दिनभर भगवान शिव का नाम जपते रहें।
शिव मंदिर में जाकर भगवान् शिव भोले नाथ के दर्शन करें।
सोमवार व्रत में संध्याकालीन पूजन (Evening Worship)
शाम को स्नान करें और फिर से शिवशंकर जी का पूजन करें।
शिव आरती करें और भगवान शिवशंकर विश्व कल्याण हेतु प्रार्थना करें।
आरती: शाम को भगवान शिव की आरती करें और फिर व्रत पारायण समाप्त करें।
भगवन भोले नाथ से क्षमा याचना करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
सोमवार व्रत के विभिन्न प्रकार (Different Types of Somvar Vrat)
सोमवार व्रत के तीन प्रकार नारद पुराण में उल्लेखित किये गए हैं
प्रति सोमवार व्रत: यह व्रत हर सोमवार को रखा जाता है।
सौम्य प्रदोष व्रत: यह व्रत प्रदोष तिथि को रखा जाता है।
सोलह सोमवार व्रत: यह व्रत सोलह सोमवार तक लगातार रखा जाता है।
नारद पुराण में उल्लेखित सोमवार व्रत से मिलने वाले लाभ (Benefits of Somvar Vrat in Narad Purana)
नारद पुराण के अनुसार, सोमवार व्रत रखने से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है।
इस व्रत से व्रतधारी को सुख, समृद्धि, और शांति की प्राप्ति होती है।
व्रतधारी की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
व्रतधारी को रोगों से मुक्ति मिलती है।
व्रतधारी को वैवाहिक जीवन में सुख प्राप्त होता है।
व्रतधारी को संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती है।
सोमवार व्रत में पुरे दिन का डाइट प्लान
सोमवार व्रत, चाहे वह निर्जला हो या फलाहारी, एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है। इस दौरान, शरीर को ऊर्जावान और स्वस्थ रखने के लिए भोजन का विशेष महत्व होता है।
सोमवार व्रत में सुबह का भोजन
गुनगुना पानी और नींबू: सुबह खाली पेट 1 गिलास गुनगुने पानी में आधा नींबू निचोड़कर (शहद भी डाल सकते हैं) पीना शरीर को हाइड्रेट रखने और पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मदद करता है।
भीगे हुए ड्राई फ्रूट्स: रातभर भीगे हुए कुछ ड्राई फ्रूट्स (बादाम, अखरोट, अंजीर) खाना ऊर्जा, पोषण और स्वस्थ वसा प्रदान करता है।
अन्य विकल्प (Other Options):
व्रत के फल: फलाहार व्रत में, आप मौसमी फलों का सेवन कर सकते हैं।
व्रत के आटे से बनी चीजें: आप व्रत के आटे से बनी चीजें जैसे कि ढोकला, उपमा, इडली आदि खा सकते हैं।
सोमवार व्रत में ध्यान देने वाली बातें
नाश्ते में भारी या तले हुए भोजन का सेवन न करें।
व्रत के दौरान पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहें।
यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो व्रत रखने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
सोमवार व्रत में दोपहर का भोजन
साबूदाना खिचड़ी: साबूदाना खिचड़ी एक स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन है जो व्रत के दौरान ऊर्जा और पोषण प्रदान करता है।
सिंघाड़े की रोटी और सब्जी: सिंघाड़े की रोटी और सब्जी एक स्वस्थ और हल्का भोजन है जो व्रत के दौरान पेट को भरा रखता है।
व्रत के आटे से बनी चीजें: आप व्रत के आटे से बनी चीजें जैसे कि ढोकला, उपमा, इडली आदि खा सकते हैं।
सोमवार व्रत में शाम का भोजन या डिनर
नारियल पानी: नारियल पानी शरीर को उर्जा प्रदान करता है और शरीर में पानी का संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
मखाने: मखाने प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत हैं, जो आपको ऊर्जावान और पेट भरा महसूस कराते हैं।
रात का भोजन हल्का और पौष्टिक होना चाहिए।
मिलेट (कुट्टू का आटा आदि) से बनी 1 रोटी: मिलेट प्रोटीन, फाइबर और मिनरल्स का अच्छा स्रोत हैं।
कद्दू की सब्जी: कद्दू एक स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी है जो व्रत के दौरान पेट को भरा रखता है।
सलाद: सलाद में ताजी सब्जियां और फल शामिल करें, जो व्रत के दौरान आवश्यक विटामिन और खनिज प्रदान करते हैं।
1 गिलास दूध और 1 सेब: दूध प्रोटीन और कैल्शियम का अच्छा स्रोत है, जबकि सेब फाइबर और विटामिन C प्रदान करता है।
सोमवार व्रत कथा शिव आरती
Coclusion:-
नारद पुराण में वर्णित, सोमवार व्रत भगवान शिवशंकर की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक बहुत ही सरल और प्रभावी उपाय है। यह व्रत श्रद्धालुओं द्वारा हर सोमवार को किया जाता है और माना जाता है कि इससे भगवान शिवशंकर जी का आशीर्वाद मिलता है जिससे मानव मात्र के जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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